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BBC NEWS ARTICL
1857 की लड़ाई और सावरकर के इतिहास पर लिखनेवाले प्रोफेसर शेषराव मोरे के मुताबिक-“पहले वर्ण को व्यवसाय के तौर पर बांटा गया, पर बाद में धर्मशास्त्र में दो ही वर्ण माने गए. एक थे ब्राहमण और अन्य तीनों को एक श्रेणी में शूद्र माना गया.इसके पीछे कुछ पुराणों में बताया गया एक मिथक था. इसके मुताबिक विष्णु के अवतार माने जाने वाले परशुराम और क्षत्रियों के बीच लड़ाई हो गई और उसमें सब क्षत्रिय मारे गए.पीछे सिर्फ विधवाएं और बच्चे रह गए, जिन्हें प्रजा यानी शूद्र माना गया.इस ग़लत मान्यता के चलते और जाति प्रथा को क़ायम रखने के लिए ब्राहमणों ने शिवाजी का राज्यभिषेक करने से मना कर दिया.शिवाजी महाराज की जाति क्षत्रीय ही है क्योंकि उनका घराना राजा का घराना था और उनकी पीढ़ियां लड़ाई के कौशल में माहिर थीं.वो राजस्थान के राजपूत घराने से महाराष्ट्र आए थे और क्षत्रिय और शूद्र की ये बहस बिल्कुल बेमानी है.वर्ण व्यवस्था से पहले शूद्र भी राजा थे और क्षत्रिय वेद लिखते थे. ये सारे अंतर तो ब्राहमणों के ही बनाए हुए हैं और इतिहास भी उन्होंने ही लिखा है.”