Yuva Samadhan Archives - Rakt Data https://raktdata.org/category/news/yuva-samadhan/ Social media site for Raktdata Community Mon, 19 Dec 2022 13:20:30 +0000 en-GB hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.3 https://raktdata.org/wp-content/uploads/2022/11/cropped-Screenshot-2022-11-14-at-11.51.54-PM-32x32.png Yuva Samadhan Archives - Rakt Data https://raktdata.org/category/news/yuva-samadhan/ 32 32 संघटन की शक्ति https://raktdata.org/%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%98%e0%a4%9f%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%b6%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a4%bf/ https://raktdata.org/%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%98%e0%a4%9f%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%b6%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a4%bf/#respond Mon, 19 Dec 2022 13:18:17 +0000 https://raktdata.org/?p=276 *”छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज संगठन” की आवश्यकता क्यों है?*आधुनिक भौतिकवाद के अतिरेक में एवं वर्तमान राजनीतिक लोकतांत्रिक परिवेश में अनेक समाज बंधु प्रायः कहते रहते हैं कि जब वर्ण व्यवस्था प्रासंगिक नही रही, जाति व्यवस्था भी धीरे धीरे समाप्त होती दिख रही है तब *”छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज संगठन” की आवश्यकता क्यों है?*। ऐसे बंधुओं […]

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*”छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज संगठन” की आवश्यकता क्यों है?*आधुनिक भौतिकवाद के अतिरेक में एवं वर्तमान राजनीतिक लोकतांत्रिक परिवेश में अनेक समाज बंधु प्रायः कहते रहते हैं कि जब वर्ण व्यवस्था प्रासंगिक नही रही, जाति व्यवस्था भी धीरे धीरे समाप्त होती दिख रही है तब *”छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज संगठन” की आवश्यकता क्यों है?*। ऐसे बंधुओं द्वारा यह सिद्ध करने की कोशिश भी होती है कि समाज में जितनी बुराइयां हैं, उन सबके लिए जाति-व्यवस्था ही दोषी है। परन्तु आक्षेपों के बावजूद भी जाति व्यवस्था अभी तक चल रही है और किसी न किसी रूप में आगे भी चलती रहेगी, यही इस बात का प्रमाण है कि यह व्यवस्था इतनी बुरी नहीं है, जितनी समझी जाती है। मेरे विचार से तो स्वार्थी तत्वों द्वारा दी गई सामाजिक बुराइयों / कुरीतियों ने ही जाति व्यवस्था को दूषित कर रखा है। वृहद स्तर पर देखें तो व्यवहारिक जातीय संगठन का अभाव और कमजोर होते जाना मनुष्य को व्यक्तिगत और सार्वजनिक रूप से कमजोर करता है। वास्तव में जातीय संगठन की कमजोरी तो सामाजिक बुराइयों / कुरीतियों का अंतर्जातीयकरण करती दिख रही है। ऐसी परिस्थिति में *छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज* जैसी अल्पसंख्यक जातियां सामाजिक कुरीतियों का दुष्परिणाम तो भोगेंगी ही साथ साथ संगठन के अभाव में शासन प्रशासन द्वारा मिलने वाली सुविधाओं से अनभिज्ञ भी रहेंगी और सुविधाओं का लाभ भी नही उठा पायेंगी। सारी सुविधायें अन्य जातियों के वे संपन्न लोग ही ले पायेंगे जिन्होंने पिछड़े न होते हुये भी कागजी आधार पर खुद को पिछड़ा प्रमाणित करवा लिया है। यहां तक कि दिन रात अपनी जाति / जातीयता को कोसने वाले महानुभाव भी जाति प्रमाणपत्र हाथ में लेकर शासन द्वारा दी जाने वाली जाति आधारित सुविधाओं को लेने में आगे रहते हैं। स्वार्थों, भौतिकता से भरी हुई तथाकथित आधुनिकता के दायरे से थोड़ा हटकर सोचा जाये कि *”छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज संगठन”* क्यों आवश्यक है और इसका क्या लाभ है। एक संगठित छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज निम्नानुसार उपयोगी हो सकता है।*(1) सामाजिक अपनत्व:-* सभी जानते और मानते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और इस नाते उसे आपसी व्यवहार और रिश्तों के माध्यम से अपनत्व की आवश्यकता होती है जहां वह अपनों के बीच में अपने दुख सुख बांटता है। इस कड़ी में वह अपनी परेशानियों के समाधान के लिये सलाह और मार्गदर्शन अपने जातीय संगठन से प्राप्त करने में सहजता अनुभव करता है। अब तो छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज में अनेक उदाहरण सामने आने लगे हैं जब संगठन विपत्ति के समय भुक्तभोगी को सहयोग के लिये अपील करता है और प्रायः सहयोग मिलता भी है।इस तरह से एक संगठित छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज एक सशक्त ट्रेड यूनियन के रूप में कार्य कर सकता है। यह समाज बंधुओं के तीज त्योहारों में उल्लास भरता है, खुशियों में सम्मिलित होता है, आपदा के समय मनोबल बढ़ाता है। सीधे सीधे कहा जाये तो सामाजिक संगठन की उपयोगिता समाज बंधुओं के जन्म से लेकर अंतिम संस्कार तक है। *(2) सामाजिक परम्परायें :-* जाति के अंदर परम्परायें सभी के लिये समान होती हैं कुछ परम्परायें सही होती हैं तो कुछ परम्पराओं / रूढ़ियों में समयानुसार परिवर्तन की आवश्यकता पड़ती है। अब चूंकि जाति बंधु अपनी परम्पराओं को जानते समझते हैं तो सही परम्पराओं का पालन और रूढ़ियों का सुधार सामूहिक रूप से कर सकते हैं। हम अपनी परम्पराओं को न तो दूसरी जातियों पर थोप सकते हैं और न ही उनकी परम्पराओं में सुधार कर सकते हैं। यहां तो संगठित छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज की अनिवार्यता ही है क्योंकि बिना परम्पराओं के कोई भी समुदाय होता ही नही है। *(3) जीवन साथी का चुनाव:-* कहने को तो अब अंतरजातीय विवाह बहुत हो रहे हैं इसका अर्थ तो यही निकलता है कि अन्य जातियों से जीवन साथी चुना जा सकता है परंतु अन्य परिवेश / जातियों से चुना गया जीवन साथी परिवार रिश्तों में सहजता से कभी नही स्वीकारा जाता। पूरे जीवन रिश्तों में उपेक्षा का भय बना रहता है। इससे बड़ी बात यह है कि जब युवक युवतियों के अभिभावक रिश्ते देखते हैं तो उनका दायरा जाति के अंदर ही हो सकता है वे इस दायरे से निकलकर अन्य जातियों से रिश्ते मांगने जा नही पाते। जहां युवक युवती स्वयं अन्य जातियों से जीवन साथी चुनते हैं तो विवाद की स्थिति में कोई समझाने वाला ही नही होता। अर्थात यदि जीवन साथी सजातीय है तो वैवाहिक रिश्तों को बनाने से लेकर बचाने के लिये संगठित छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज बड़ी भूमिका निभा सकता है। विजातीय संबंधों में तो किसी का कोई जोर रहता ही नही है।*(4) आपसी सहयोग की भावना:–* हम अपनी जाति-व्यवस्था के दायरे में सदस्यों में सद्भावना एवं सहयोग की भावना का विकास कर सकते हैं। मिलकर एक आर्थिक व्यवस्था का निर्माण करके जरूरतमंदों की सहायता कर सकते हैं, जिससे राज्य-सहायता की आवश्यकता कम पड़ेगी वैसे भी संबंधित विभागों की जटिल प्रक्रिया के कारण बहुतेरे लोग शासन से सहायता ले नही पाते। जाति या समाज बंधुओं के बीच जानकारियों का आदान प्रदान सहज भाव से हो सकता है और शासन द्वारा सहयोग दिलाने में जानकार लोगों का मार्गदर्शन बहुत उपयोगी होता है।*(5) जातिगत व्यवसायों का संरक्षण:–* प्रत्येक जाति का एक विशिष्ट व्यवसाय होता है, जिससे न केवल नयी पीढ़ी का भविष्य निश्चित हो जाता है, अपितु उसे उस व्यवसाय को सीखने का भी उचित अवसर प्राप्त होता है। चूंकि जाति के साथ जातिगत व्यवसाय का तादात्म्य होता है, व्यवसाय / कारीगरी में गर्व भी अनुभव होता है। प्राचीन भारत में कारीगरों की कई पीढ़ियां होती थीं, जो अपने कौशल में सिद्धहस्त रहती थी और जातिगत व्यवसाय को अपने हाथों से निकलने नही देती थीं। *मुझे लगता है यहां हमने एक बड़ी चीज खो दी है। छीपा रंगारी का कलात्मक व्यवसाय हम अपने बीच से समाप्त कर चुके हैं। क्या यह उचित नही होता कि हम संगठित रहकर अपनी छीपा रंगारी कला को नई तकनीकों के साथ अपने बीच जीवित रखते। रोजगार का एक साधन हमारे बीच से निकल कर बड़े उद्योगपति वर्ग के पास चला गया।* और यह केवल हमारे साथ नही हुआ बल्कि कारीगरी, क्राफ्ट, कला के आधार पर बनी अनेक जातियां अपने जमे जमाये व्यवसाय छोड़कर रोजगार की आस में भटकने को विवश हैं। *(6) सांस्कारिक शुद्धता:-* अन्य जातियों के समान ही छीपा रंगारी क्षत्रिय संगठन भी अंतरजातीय विवाहों का समर्थन नही करता। जाति के अंदर विवाह होने से परिवारों में दो जातियों के बीच होने वाले संस्कारों और परम्पराओं के बीच टकराव की आशंका नही रहती। यद्यपि इसके बाद भी अंतरजातीय विवाह होते ही हैं कभी युवक-युवतियों के आपसी लगाव के कारण होते हैं तो कभी माता-पिता, युवक-युवतियों की किसी विवशता के कारण होते हैं। मेरे विचार से अंतरजातीय विवाहों का विरोध करने की बजाय हमें जातीय विवाहों के लाभों से नयी पीढ़ी को अवगत कराना चाहिये। सामाजिक कुरीतियों को समाप्त कर समाज को युवाओं के लिये अधिक आकर्षक बनाने की आवश्यकता है ताकि कोई भी निराश होकर छीपा रंगारी जाति से विमुख न हो। गरीब अमीर सभी की उपयुक्त रिश्तों की आकांक्षाये समाज के अंदर उपलब्ध आर्थिक साधनों में दहेज/मांग मुक्त वैवाहिक कार्यक्रमों में पूरी हों यह सुनिश्चित करना होगा। यद्यपि किसी गरीब का अंतरजातीय विवाह करना उसे जाति से दूर कर देता है संपन्न वर्ग को समाज/जाति में देर सबेर स्वीकार कर ही लिया जाता है। इसलिये अन्तर्जातीय विवाह करने वालों पर प्रतिबंध लगाने की बजाय अपने जातीय संगठन को ही सामाजिक सुधारों के साथ व्यवस्थित किया जाये। इससे हम अपनी जातीय शुद्धता के साथ प्रगतिशील छीपा रंगारी समाज की आवश्यकता को साकार कर सकेंगे।*(7) पारिवारिक / कौटुम्बिक न्याय में सहजता:-* सभी जानते हैं कि विवाद, कलह, अपराध, पारिवारिक संपत्ति के बटवारे की स्थिति में सरकारी न्याय व्यवस्था से न्याय पाना कितना खर्चीला होता है, कितना लंबा समय लगता है, इस समय व्यक्ति कितना तनावग्रस्त रहता है कई बार तो न्याय मिलने के बाद भी उस न्याय का औचित्य नही रह जाता। गरीब आदमी तो कोर्ट कचहरी जाने की हैसियत भी नही रखता। आजकल तो छोटे छोटे पारिवारिक विवाद भी अदालतों में पहुंच जाते हैं और अंततः संबंधित परिवारों की टूट के कारण बनते हैं। सुनवाई सुलभ न होने, सही राह बताने वाले मंच के न होने से, परिवारों में सामंजस्य न बन पाने के कारण कई दुर्भाग्यपूर्ण हादसे हो जाते हैं। निराश होकर लोग अपनी जान से भी खेल जाते हैं बाद में पता चलता है कि इतना निराश होने का कारण कोई बड़ा नही था। ऐसी स्थिति से उबारने के लिये जातीय संगठनों / पंचायतों की बड़ी भूमिका रही है, जातीय संगठनों की न्याय व्यवस्था बड़ी सहजता से संबंधितों को संतुष्ट कर सकती है। क्योंकि वहां सभी पक्षों की सुनने वाले अपने ही होते हैं, कम समय में संदेह/समस्याओं का हल मिलता है। समाधान देकर सामाजिक निर्णयों का पालन देखने वाले हितैषी समाज बंधु रिश्तेदार होते हैं। छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज संगठन ऐसी कल्याणकारी और सहज सुलभ न्याय व्यवस्था को पुनः जाग्रत कर सकता है और परिवार, कुटुम्ब, जाति के बीच में विवाद की स्थिति में सबको ससम्मान संतुष्ट करते हुये कम समय में, बिना अदालत वकीलों के चक्कर लगाये न्याय दे सकता है। अपनों के बीच में अपनी समस्यायें रखने का अवसर परिवारों को टूटने से एवं अनपेक्षित घटनाओं से बचा सकता है।*(8) अनाथ / असहाय बच्चों का पालन पोषण:-* दुर्भाग्य से यदि किसी बच्चे के माता पिता न रहें तो ऐसे बच्चों के पालन पोषण के लिये बच्चों के अनुकूल अपनत्व से भरे वातावरण में पालन पोषण की व्यवस्था जाति के अंदर अधिक अच्छी हो सकती है ऐसे बच्चे पारिवारिक रिश्तों जैसा प्यार पा सकते हैं यदि संगठित समाज बंधु अनाथ बच्चों के पालक परिवार को यथोचित मार्गदर्शन और सहयोग दे। यहां भी संगठित छीपा रंगारी समाज अपने जाति बंधुओं की नई पौध को मुरझाने से बचा सकता है।उपरोक्त के अतिरिक्त एक संगठित छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज जातिबंधुओं के लिये और भी लाभदायक सिद्ध होगा, इसलिये हमें जातीय आधार पर संगठित होना ही चाहिये। इससे हमारी राष्ट्रीय और वैश्विक पहचान बनेगी। एक शिक्षित, सुसंस्कृत, सभ्य जाति के रूप में जातिबंधु संगठित होकर अपने जाति बंधुओं की उन्नति के साथ अपने धर्म और राष्ट्र के लिये भी समर्पित रहेंगे। निवेदकअशोक कुमार राठौरजबलपुर (मध्यप्रदेश)

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सभी माताओं बहनों ओर मान्यवारो से निवेदन है की मुझे ओर समाज के अन्य युवाओं को समाज के इतिहास की जानकारी दी जाए । हम युवा स्पष्टीकरण चाहते है की हम कोन है , हमारा मूल क्या है ….. बोहोत से युवा गैर समझ में जी रहे है ।

कृपया आप सभी मान्यवर युवा प्रांतीय ग्रुप ज्वाइन करे ओर मै कुछ प्रश्न लिख रहा हु उसका उत्तर देते हुए समाज के युवाओं को समाज के बारे में जागृत करे।

१. हम कोन है ?

२. हम हमारे समाज के नाम में क्षत्रिय क्यों लिखते है ?

३. हमारी जात रंगारी / छीपा है या क्षत्रिय है ?

४. या बस हम क्षत्रिय थे ओर काम की वजह से बिछड़ गए?

५. क्षत्रिय जात भी है कुल भी है , ऐसा क्यों ?

६. हमारे समाज / कुनबे का राजपूतों में क्या स्थान है?

७. हमारे समाज का जन्म कैसे ओर कब हुआ ?

८. क्या 31 + उम्र वालो ने , विधवा ने , विधुर ने , डिवोसी ने ओर दिव्यांग ने सम समाज जो क्षत्रिय कुल में आता है ऐसे में शादी करना उचित है या अनुचित है ?

९. शिवाजी महाराज स्वयं को राजपूत घोषित कर के राज्याभिषेक किए उनका अभी का परिवार भी खुद को सिसोदिया वंश का मानते है ओर यह कई किताबो में भी लिखा हुआ है। ( शिवाजी महाराज राजपूत थे उन्होंने महाराष्ट्र में आकर खुद का मराठा साम्राज्य स्थापित किए ।) इसपर आप सभी मान्यवारो से स्पष्टीकरण चाहिए है।

१०. हम महाराणा प्रताप जी को हमारे पूजनीय मानते है तो ऐसे में हमे उनके वंशज श्री छत्रपति शिवाजी महाराज की भी फोटो हर प्रोग्राम में साथ में रखना चाहिए।

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