समाधान

सभी माताओं बहनों ओर मान्यवारो से निवेदन है की मुझे ओर समाज के अन्य युवाओं को समाज के इतिहास की जानकारी दी जाए । हम युवा स्पष्टीकरण चाहते है की हम कोन है , हमारा मूल क्या है ….. बोहोत से युवा गैर समझ में जी रहे है ।

कृपया आप सभी मान्यवर युवा प्रांतीय ग्रुप ज्वाइन करे ओर मै कुछ प्रश्न लिख रहा हु उसका उत्तर देते हुए समाज के युवाओं को समाज के बारे में जागृत करे।

१. हम कोन है ?

२. हम हमारे समाज के नाम में क्षत्रिय क्यों लिखते है ?

३. हमारी जात रंगारी / छीपा है या क्षत्रिय है ?

४. या बस हम क्षत्रिय थे ओर काम की वजह से बिछड़ गए?

५. क्षत्रिय जात भी है कुल भी है , ऐसा क्यों ?

६. हमारे समाज / कुनबे का राजपूतों में क्या स्थान है?

७. हमारे समाज का जन्म कैसे ओर कब हुआ ?

८. क्या 31 + उम्र वालो ने , विधवा ने , विधुर ने , डिवोसी ने ओर दिव्यांग ने सम समाज जो क्षत्रिय कुल में आता है ऐसे में शादी करना उचित है या अनुचित है ?

९. शिवाजी महाराज स्वयं को राजपूत घोषित कर के राज्याभिषेक किए उनका अभी का परिवार भी खुद को सिसोदिया वंश का मानते है ओर यह कई किताबो में भी लिखा हुआ है। ( शिवाजी महाराज राजपूत थे उन्होंने महाराष्ट्र में आकर खुद का मराठा साम्राज्य स्थापित किए ।) इसपर आप सभी मान्यवारो से स्पष्टीकरण चाहिए है।

१०. हम महाराणा प्रताप जी को हमारे पूजनीय मानते है तो ऐसे में हमे उनके वंशज श्री छत्रपति शिवाजी महाराज की भी फोटो हर प्रोग्राम में साथ में रखना चाहिए।

3 thoughts on “समाधान

  1. युवाओं को हमारा इतिहास जानने की कोशिश की जा रही है , आज समाज का युवा वर्ग हमारे इतिहास के बारे में सीखेगा / जानेगा तो वो इतिहास अमर बन जाएंगा । में कुंदन कैलाबाग मेरे स्वयं के अनुभव से युवाओं के प्रश्नों पर प्रकाश डालते हुए कुछ मार्गदर्शन करना चाहता हु। मेरा यह अनुभव मैने खास जब समाज का इतिहास जानने के लिए राजस्थान गया था आप सब से साझा कर रहा हु 🙏 , नीचे लिखे हुए मेरे निजी विचार है जो मैंने मेरे आज तक के अनुभव से लिख रहा हु। हो सकता है कुछ इनफॉर्मेशन कम लिखने में आजाए वह मैं समय रहते करेक्ट करूंगा।

    1️⃣ ना तो हम रंगारी थे , ना ही हम छीपा थे , ना ही हम खानाबदोश थे ; मूलतः हमारे पूर्वज क्षत्रिय योद्धा थे , अर्थात हम राजपूत है ! पर समय चलते हमारे आजीविका की वजह से हमे छिपा / रंगारी कहा गया , हालाकि हमारी कपड़े रंगाई की आजीविका पूर्ण कार्यकाल में बोहोत कम वर्षो की रही है ज्यादा कार्यकाल के लिए हम लड़ाकू योद्धा थे।

    2️⃣ सेनापति महाराणा प्रताप सिसोदिया इनके नेतृत्व मे हमारे पूर्वजों की हल्दीघाटी युद्ध में भी भागीदारी थी , वे क्षत्रिय योद्धा थे। इसलिए हम हमारा क्षत्रिय होने का अस्तित्व जाति में क्षत्रिय उल्लेख कर के बनाए रखे है।

    3️⃣

    🔗 हल्दीघाटी युद्ध में कुछ ही योद्धा शेष बचे थे इसलिए सेनापति के उपदेश से छुपने का आदेश तथा वंश की बेला संभल सके के इसलिए हमें ४०० से ५०० परिवारों को “छिपा” दिया गया ( जैसे की महाभारत में अज्ञातवास था उसप्रकार से ) , ईस कारण हम छिप जाने से कालांतर से छिपा कहलाए गए।

    🔗 अपने मूल अस्तित्व वाले जगह को ढाणी बोला करते थे और डोडिया खेड़ा , जिला उन्नाव , राजस्थान मे हम बस गए !

    🔗 अभीभी हमारा समाज ” छीपा का अकोला गांव ” राजस्थान मे बड़ी मात्रा मे है !

    🔗 हमारा साम्राज्य मेवाड़ था एव भाषा रेवाड़ी इसी भाषा के चलते हमारी पहचान छिपा है !

    🔗 निजाम उस समय बहुत क्रूर थे और मां/स्त्रियों पर अत्याचार काफी होते थे उनपर जबरदस्ती की जाति थी मार दिया जाता था , इसलिए उस समय जौहर हुवा करते थे और हमे हमारी जान बचा कर छिपना पड़ा था।

    4️⃣
    🔗 हमे युद्ध के अलावा दूसरा काम मालूम नहीं था ना हमारे पास कोई आजीविका का साधन बचा था , तो समय रहते हमारे पूर्वज युद्ध के बाद छुपी हुई स्थिति ” अज्ञातवास ” के दौरान खानाबदोश कहलाए गए जैसे हम आज रंगारी / छीपा कहलाए जा रहे है ।

    🔗 फिर धीरे धीरे आजीविका के लिए एक दूसरेका देखके कपड़े रंगाई का काम करने लगे ओर रंगाई किए गए कपड़े फेरी से बेचने लगे ,धीरे धीरे यह काम कपड़े के गट्ठे में बदल गया!

    5️⃣ क्षत्रिय (योद्धा) / राजपूत यह जात भी थी वर्ण भी था, आज भी बोहोत से लोग क्षत्रिय और राजपूत नाम जात में लिखते है।

    🔗 पहले के जमाने में हमारे पास हाथी, उठ और घोड़े हूवा करते थे हमारे पास कालांतर मे १९७० तक दादाजी लोगों के पास घोड़े बच गए थे, बहुत से इस बात को जानते है!

    6️⃣ हमारे समाज का जन्म उस समय राजघराने का ही है , अर्थात हम राजपूत क्षत्रिय ही है लेकिन धीरे धीरे समय बीतते गया ओर हमारी परंपराएं नष्ट होते चली गई , हालाकि हमने हमारी बोहोत सी परंपराएं संजो कर रखी हुई है।

    7️⃣ हमारे समाज का जन्म कैसे और कब हुवा यह राव साहब ( हमारे सर्व पुराने भाट ) भी बता नही पाएंगे, लेकिन पुरखो के नाम पर कुल चलते गया जैसे की उदाहरण आसारामसिंह बघेल भारद्वाज गोत्र उनके पास अपने समाज की पोथी शायद सन १६०० के पहले की नही है। तो पोथी ( कागजी तौर से ) के हिसाब से हमारा समाज १६०० का मान सकते है।

    🔗 जैसे हम युद्ध खत्म हुआ हम छिपते हुए हमारा डेरा / ढाणी ( जैसे की बघेल डेरा , राकेश डेरा …. सोलंकी डेरा ) सबसे पहले महाराष्ट्र के पौनी तहसील ( नदी की वजह से ), जिला भंडारा में आ बसे, बादमें हमारा समूह पौनी से भीवापुर होते हुए बाकी गांव में फ़ैल गए , आज भी पौनी में हमारे समाज के १९०० से रहिवासी होने के कागजात कार्यालय में उपलब्ध है। ( नात्थुसिंग जी सिसोदिया भाट साहब से मिली हुई जानकारी। हमारे समाज में केवल दो सती हुई है ओर वे केवल कैलाबाग परिवार से ही थे सन 1613 ,1918 में , ऐसी अनेक सतिया थी पर पोथी में दो का ही वर्णन है । हमारी राजपूत जाति ज्वाला माता को मानती थी ओर दूल्हा देव को मानती थी ।)

    8️⃣ डीएनए 🧬 को मेंटेन रखने के हिसाब से परवर्ण में शादी करना अनुचित माना जाता था , ऐसा करने से पूर्वजों से चलते आराहा डीएनए का साइकिल में अलग बदलाव आजायेंगा । एक ही वर्ण में अनेक उचले निचले वर्ग ( जाति ) को देखा जाता है , राजाओं के जमाने में केवल उच्च स्तर के राजपूत / क्षत्रिय एक दूसरे से वैवाहिक संबंध स्थापित करते थे। पिता संबंध से कुछ शेखावटी और दासीपुत्र को भी राजपूत / क्षत्रिय माना जा सकता है । राजा के सभी पुत्र अगर युद्ध में वीर शहीद हो जाते थे तो ये ही दासीपुत्र राजा बन जाते थे । उदाहरण ” सम्राट अशोक ” दासी पुत्र थे पर राजपूत भी थे ।

    🔗 कालांतर से हम छोटे छोटे टुकड़ों में बट गए है ओर वैवाहिक संबंध आपने कुनबे में ही करना पसंद करते है क्योंकि हम एक दूसरे को जानते है , एक दूसरे के साथ कई दशकों से सुख दुख बांटते आरहे है । पर कुछ अपवाद स्थिति भी जन्म लेती है जैसे की युवा या युवती की विवाह की उम्र निकल जाना , उनका दिव्यांग होना , विधवा , विदुर हो जाना या फिर वैवाहिक संबंध टूट जाना एसे स्थिति में अगर हमारे कुनबे में उन्हे मेलजोल होने वाला रिश्ता नही मिला तो वे सम समाज या फिर क्षत्रिय वर्ण में शादी कर सकते है , ऐसा करने से उनका 🧬 डीएनए भी सुरक्षित रहेगा ।

    9️⃣ महाराष्ट्र मे सिर्फ मराठा ही योद्धा थे इसलिए उन्हें क्षत्रिय कहा जा सकता है, कुछ विवादित बाते है जो मराठाओ को राजपूत घोषित करती है वो एक तरफ रक्खे फिर भी हम ये जुटला नही सकते की महाराष्ट्र के मराठा योद्धा क्षत्रिय ही थे।

    🔟 जैसे हमारे लिए पूजनीय श्री महाराणा प्रतापसिंह सिसोदिया है ,वैसे ही शिवाजी महाराज भी पूज्यनीय है , आज हम हिंदुस्थान मे सम्मान से जी रहे है क्योंकि छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिंदवी स्वराज्य स्थापित किया और मुगलों को अखंड भारत से खदेड़ दिया !

    🙏उपरोक्त जानकारी मुझे खुद श्री नत्थूसिंह सिसोदिया ,किशनगढ़(भाट / राव साहब) से,सन 2001 और 2007 मे मिली है ओर कुछ मैने मेरे अनुभव से लिखी है।

    गर्व से कहो हम क्षत्रिय है , हम राजपूत है ।

    🙏🙏🌹🌹🙏🙏

  2. हमारे युवा साथी एवं युवा समाजसेवी श्री महक सेठिये जी, जो पुणे से हैं, ने कुछ ज्वलंत प्रश्न अनेक वाट्सएप ग्रुपों में समाज में उठाये हैं। मैं समझता हूं कि समाज के प्रबुद्धजनों को उनके प्रश्नों के यथासंभव उत्तर देकर उनका समाधान करना चाहिये। स्वस्थ चर्चा से ही निष्कर्ष निकलते हैं। एक युवक के मन में इस तरह के प्रश्न उठना हमारी नयी पीढ़ी की सामाजिक चेतना को उजागर करता है।
    अतः मैं स्वयं अपनी अल्पबुद्धि से उनके प्रश्नों के उत्तर में अपने विचार रख रहा हूं। इन विचारों से कोई भी समाज बंधु असहमत हो सकता है इसमें मुझे कोई आपत्ति भी नही है।

    १. हम कोन है ?
    हम भारतीय हैं, हिंदू हैं, क्षत्रिय हैं और कालांतर में व्यवसाय के आधार पर छीपा/ रंगारी हुये। आज प्रायः हमारी जाति छीपा / रंगारी का काम छोड़कर जीविका के अनेक दूसरे साधन अपना चुके हैं और ऐसा अन्य सभी वर्णों जातियों में भी हुआ है। चूंकि जन्म के आधार पर ही अब जाति प्रमाण पत्र दिये जाते हैं। अब जन्म के आधार पर हम छीपा / रंगारी जाति से हैं। शासकीय आधार पर हममें से छीपा / रंगारी वे ही लोग हैं जो छीपा / रंगारी जाति प्रमाण पत्र बनवाने में सफल हो गये हैं।

    २. हम हमारे समाज के नाम में क्षत्रिय क्यों लिखते है ?
    क्योंकि हमारा ऐतिहासिक आधार पर वर्ण क्षत्रिय ही रहा है। अब दम तोड़ रही वर्ण व्यवस्था के अनुसार हम ब्राह्मण नही हैं, वैश्य और शूद्र हमें माना ही नही जाता न ही हम खुद को ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र के रूप में स्थापित कर सकते हैं। जहां तक मुझे ध्यान आता है कि समाज का रिकार्ड रखने वाले पुराने भाट नत्थूसिंह जी ने भी हमारी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्षत्रिय होने की ही बताई है अतः हम क्षत्रिय वर्ण के हैं और क्षत्रिय लिखते आ रहे हैं। मुझे यह लगता है कि इतिहास में हमारे पूर्वज युद्धकाल में सेना को सहयोग देते या युद्ध करते थे एवं शांति काल में अपना व्यवसाय करते थे।

    ३. हमारी जात रंगारी / छीपा है या क्षत्रिय है ?
    हमारी व्यवसायगत जाति रंगारी / छीपा है और वर्ण क्षत्रिय है अतः जाति के आधार पर हम रंगारी / छीपा हैं और वर्ण के आधार पर क्षत्रिय हैं। यहां यह स्पष्ट है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र जाति होने के बजाय वर्ण हैं। कहा जाता है कि मूल मनुवादी व्यवस्था में वर्ण कर्म के आधार पर ही थे बाद में अपने प्रभुत्व, व्यवसाय, जीविका को आने वाली पीढ़ी के लिये सुरक्षित रखने के लिये वर्ण व्यवस्था का आधार कर्म की बजाय जन्म से कर दिया गया।

    ४. या बस हम क्षत्रिय थे ओर काम की वजह से बिछड़ गए?
    हम क्षत्रिय वर्ण के थे, भाटों की दी जानकारी के हिसाब से हमारा संबंध राजपूताना (राजस्थान) से रहा है। मुझे यह भी लगता है कि मुगल बादशाह शाहजहां और क्रूर औरंगजेब की नीतियों और दमन के चलते हम राजस्थान से निर्वासित हो गये और अधिकतर महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ की सीमाओं के आसपास आ बसे। खुद को छुपाना भी था और जीविका के साधन भी बनाने थे अतः छीपा / रंगारी के काम को अपना लिया। कपड़ों पर प्रिंटिंग और रंगाई की कला में भी हमारी रुचि थी इसलिये छीप / रंगारी हमारा व्यवसाय एवं जाति हो गई। हम राजस्थान से निर्वासित होकर लगभग बंजारों की स्थिति में आये होंगे हम महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश के आदिकालीन / मूल निवासी नही थे इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि मूल निवासियों के पास जमीनों खेती के बड़े बड़े रकबे आज भी होते हैं जो हमारी जाति वालों के पास देखने में नही आते न ही हममें से अधिकतर के पूर्वजों के पास बड़े रकबे होने की कोई जानकारी है।

    ५. क्षत्रिय जात भी है कुल भी है , ऐसा क्यों ?
    क्षत्रिय जाति नही है, कुल भी नही है कुछ लोग तुलना करने के चक्कर में क्षत्रिय वर्ण के साथ जाति और कुल जैसे शब्द जोड़ देते हैं।

    ६. हमारे समाज / कुनबे का राजपूतों में क्या स्थान है?
    हमारे समाज / कुनबे का वर्तमान में राजपूतों में कोई विशेष स्थान नही बचा है। इसका कारण है कि हम लम्बे समय से पुराने ऐतिहासिक दौर में ही अपने मूल स्थान से कट चुके थे। उसके बाद राजपूताने या खुद को गर्व से राजपूत कहने वालों से जुड़ने में हम विफल रहे हैं। आज तो शिक्षा और नौकरी में जातिगत सुविधाओं और आरक्षण से वंचित होने के डर से खुद को राजपूत / क्षत्रिय कहने से डरते हैं कि राजपूत क्षत्रिय होने से सुविधाओं और आरक्षण से वंचित न हो जायें।

    ७. हमारे समाज का जन्म कैसे ओर कब हुआ ?
    मेरे विचार से आपके इस प्रश्न का उत्तर उपरोक्त प्रश्न क्रमांक 4 के उत्तर में ही है। यद्यपि इस बारे में अलग अलग इतिहास और जानकारी अन्य प्रबुद्ध समाजबंधु देते ही रहे हैं।

    ८. क्या 31 + उम्र वालो ने , विधवा ने , विधुर ने , डिवोसी ने ओर दिव्यांग ने सम समाज जो क्षत्रिय कुल में आता है ऐसे में शादी करना उचित है या अनुचित है ?
    मेरे विचार से विधवा विवाह, विधुर विवाह, डाईवोर्सी का विवाह, दिव्यांगों का विवाह कहीं से अनुचित नही है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, परिवार में अपनत्व और सुरक्षा अनुभव करता है। इसी तरह से अनुकूल आयु वाले 31 वर्ष से ऊपर के युवक युवती भी विवाह करने का पूर्ण सामाजिक और कानूनी अधिकार रखते हैं। कहा भी जाता है कि अधिक आयु या बुढ़ापे में पति पत्नी एक दूसरे के सहारे जीते हैं। जहां तक सम समाज / क्षत्रिय कुल / या किसी अन्यत्र जाति में विवाह करने का प्रश्न है तो यदि किसी कारण से अपनी छीपा रंगारी जाति में संबंध न हो पा रहा तो व्यक्ति विकल्प भी तलाशता है। रिश्ते अपनी जाति में हों तो अपनत्व और रिश्तेदारी में अधिक प्रगाढ़ता होती है एक दूसरे की पारिवारिक समस्याओं को सुनने सुलझाने में सहायता मिल सकती है।
    फिर भी यदि किसी लाचारी के चलते कोई युवक युवती जाति से हटकर अन्यत्र विवाह करने को विवश होते हैं तो वे अपने परिवार अपनी सामाजिक समितियों (स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय) को सूचना दें, कारण बतायें और निदान न मिलने पर अन्यत्र विवाह का निर्णय लें यही उचित होगा। ऐसी परिस्थितियों में जाति बंधु भी उन पर बहिष्कार उपेक्षा जैसी कार्यवाही न करें। बहुधा होता यही है कि संपन्न सक्षम वर्ग के अंतरजातीय विवाहों को देरसबेर मान्यता मिल जाती है और केवल कमजोर वर्ग की बखिया उधेड़ी जाती है। ऐसा तो नही होना चाहिये।

    ९. छत्रपति शिवाजी महाराज स्वयं को राजपूत घोषित कर के राज्याभिषेक किए उनका अभी का परिवार भी खुद को सिसोदिया वंश का मानते है ओर यह कई किताबो में भी लिखा हुआ है। ( शिवाजी महाराज राजपूत थे उन्होंने महाराष्ट्र में आकर खुद का मराठा साम्राज्य स्थापित किए ।) इसपर आप सभी मान्यवारो से स्पष्टीकरण चाहिए है।
    छत्रपति शिवाजी महाराज ने आजीवन क्षत्रियत्व का पालन किया। वे राजपूत (राजा के पुत्र) भी थे अतः शिवाजी महाराज के क्षत्रिय एवं राजपूत होने पर कोई संदेह नही किया जा सकता।

    १०. हम महाराणा प्रताप जी को हमारे पूजनीय मानते है तो ऐसे में हमे उनके वंशज श्री छत्रपति शिवाजी महाराज की भी फोटो हर प्रोग्राम में साथ में रखना चाहिए। 🙏
    अवश्य, महाराणा प्रताप जी तो पूरे क्षत्रिय वर्ण के साथ ही भारतवर्ष का गौरव हैं। वे महाराणा प्रताप के वंशज थे या नही इससे ऊपर उठकर शिवाजी महाराज को अपना आदर्श मानने में कोई परेशानी नही होना चाहिये।
    यदि मेरे उपरोक्त विचार किन्हीं भी समाजबंधुओं को अनुकूल न लगें तो उसके लिये क्षमा चाहूंगा।

    🙏🙏
    अशोक कुमार राठौर
    जबलपुर

  3. 🌹 गर्व से कहो हम राजपूत हैं 🌹
    ❤️1)हम छीपा या रंगारी है
    2)भाट से मिली जानकारी के अनुसार हमारे पूर्वज राजपूत थे, हमारा स्वभाव, हम देवी के उपासक है, जिस तरह से राजपूत जाती का स्वभाव है, शक्ति की उपासना, शस्त्र पूजन, ये सभी हम लोग करते है, इस लिए हम राजपूत है और छत्रीय हमारा वर्ण है!
    3)हमारी वर्तमान मे जाती छीपा /रंगारी है!
    4)हम राजपूत थे बाद मे कर्म के कारण छीपा /रंगारी हुए!
    5)छत्रीय वर्ण है
    6)पहले राजपूत थे अब छीपा /रंगारी जाती से जाने जाते है!
    7)संघर्ष के दौर मे राजस्थान से 600परिवारों का पलायन हुआ 300 परिवार मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र मे छीपा /रंगारी के नाम से जाने जाते है और 300 परिवार गढ़ा छीपा के नाम से जाने जाते है (भाट से मिली जानकारी अनुसार )!
    8)31+ उम्र वाले, विधवा, विधुर और दिव्यांग ने यदि अपने समाज मे सकल प्रयास करने के पश्चात् भी विवाह नहीं हो पता तो हमारी जाती के समान रीती रिवाज़ वाली जातियों मे (गढ़ा छीपा, गोल्या छीपा, भावसार, नामदेव )विवाह किया जा सकता है, इसके पूर्व बहुत सारी शादियां इन जातियों के साथ की गयी है, हमारी जाती और ये सब जातियाँ एक ही कुल की मानी गयी है!
    🙏🏽🌹🙏🏽
    यह जानकारी हमारे आदरणीय श्री प्रकाश वैश्य द्वारा प्रेषित किया गया है l
    उनको बहुत-बहुत धन्यवाद
    🙏🏽🌹🙏🏽
    समस्त एडमिन
    केंद्रीय .छीपा क्ष.रं. विवाह मंच
    Date 13/12/2022

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